रहबर मेरे, रहजन के मददगार बहुत थे...

~¤Akash¤~

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बे करारी में मरने को भी तैयार बहुत थे
मरकर भी अयान हम तो बेक़रार बहुत थे

आया ना कभी हम को तो रिश्ता-ए-हिसाबी
नादाँ थे हम और दुनिया मे हुशयार बहुत थे

रग रग में बसी थी जिनके फरेबी "अयान"
जबाँ से तो वे भी खुश गुफ्तार बहुत थे

क्यूँ बढ़ गये ये फासिले अब अपने दरमियाँ
कुछ सीदे सादे हम और लोग अदाकार बहुत थे

जाहिर ना किया हमने तो उससे गम-ए-फ़िराक
थे होंठ बंद, आँखों में अशआर बहुत थे

बस कहने को घर में मेरे आँगन ये रहा एक
पर दिल में तो सबके दर-ओ-दीवार बहुत थे

हुआ हैं पशेमां बस हम से ही क्यूँ निजाम
यूँ मयकदे में हमसे बादाख्वार बहुत थे

माँ की दुआएं करती रही रहबरी मेरी
रहबर मेरे, रहजन के मददगार बहुत थे...
 
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