गीली मिटटी जैसे फिर घुल कर बह जाता मैं.

~¤Akash¤~

Prime VIP
यादों को उसकी हर शब् ही पास बुलाता मैं
खुद अपने ही दिल में यारों आग लगाता मैं

रोज डराते जब मुझको तन्हाई के साये
हर दिन फिर खुद को ही अपने गीत सुनाता मैं

इसे दुनिया से ऐब-ओ-हुनर कैसे छुपते मेरे
अपनी गजलों में सबकुछ जाहिर कर जाता मैं

जिस्म बेहिसी वाले थे और घर थे बुत खाने
दिल की धड़कन लोगों को कब तक समझाता मैं

उम्र बरसती है बादल सी मिटटी की रूह पर
गीली मिटटी जैसे फिर घुल कर बह जाता मैं.
 
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