पर उस मकतब में दाखिला नहीं था..

~¤Akash¤~

Prime VIP
था दीवाना मैं, पर दिलजला नहीं था
तेरी यादों का जब सिलसिला नहीं था

इल्जाम-ए- बेवफाई उसको क्या देते
खुद ज़माने से लड़ने का हौसला नहीं था

हमे खुद से तो शिकायत थी बहुत
पर आपसे तो कोई गिला नहीं था

हाले दिल किस से और क्या कहते
आपसा तो कोई मिला नहीं था

शौंके-अनापरवारी हमको भी था बहुत
और बदला उसने भी फैसला नहीं था

दिल में तो दोनों के दीवारें थी
कहने को बस फासिला नहीं था

हम भी ग़ालिब-ओ-मीर हो जाते
पर उस मकतब में दाखिला नहीं था..
 
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