कोई एक परिंदा भी सजर से नहीं निकला..

~¤Akash¤~

Prime VIP
हार ना हो फिर से, वो घर से नहीं निकला
कुछ काम यहाँ उसके हुनर से नहीं निकला

उस पर ना हुआ बिछुड़ने का कभी कुछ भी असर
और मैं उम्र भर इस एक असर से नहीं निकला

उसे जिद थी कोई और मेरे दिल में थी अना
वो इधर से नहीं निकला मैं उधर से नहीं निकला

कुछ लम्हों में ही भूल गया हमको वो "अयान"
खुद आज तलक मेरी नजर से नहीं निकला

वो जब्त-ए-गम था मेरा या जफ़ाएं थी किसी की
एक बूँद लहू चाक-ए-जिगर से नहीं निकला

चुपके से गया हैं वो इस दिल के मकाँ से
कोई नक़्शे-कदम राहे गुजर से नहीं निकला

चले थे जिस जगह से हम वहीँ हैं आज भी
कोई मंजिल का निशां मेरे सफ़र से नहीं निकला

जल गये साथ ही सारे वो महोब्बत में उसी की
कोई एक परिंदा भी सजर से नहीं निकला..
 
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