~¤Akash¤~
Prime VIP
छुपायें खुद को कैसे उस बे नकाब से
रखता है रुख पे वो कई आफ़ताब से
एक तो ज़माने ने मशहूर कर दिया
कुछ सब से दुश्मनी कुछ हम हैं ख़राब से
इन मस्त निगाहों को कभी मेरे नाम कर
ये प्यास तो बुझती नहीं है अब शराब से
क्या रखते हो तुम मुझसे दुश्मनी अब भी
पूछती रहती हैं हवा भी हबाब से
बस यूँ ना कहीं दिल की बात उम्र भर उसे
टूट जाये ना दिल कहीं उसके जवाब से
यारब मुझे "इकबाल" का लहजा नवाज दे
लिखूं कुछ तो शेर मैं भी ला-जवाब से..
रखता है रुख पे वो कई आफ़ताब से
एक तो ज़माने ने मशहूर कर दिया
कुछ सब से दुश्मनी कुछ हम हैं ख़राब से
इन मस्त निगाहों को कभी मेरे नाम कर
ये प्यास तो बुझती नहीं है अब शराब से
क्या रखते हो तुम मुझसे दुश्मनी अब भी
पूछती रहती हैं हवा भी हबाब से
बस यूँ ना कहीं दिल की बात उम्र भर उसे
टूट जाये ना दिल कहीं उसके जवाब से
यारब मुझे "इकबाल" का लहजा नवाज दे
लिखूं कुछ तो शेर मैं भी ला-जवाब से..