तू खुद ही कहीं ' मीर का दीवान' ना हो जाए.............

~¤Akash¤~

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कही फिर से मेरे जीने का इंतजाम ना हो जाए
ये प्यास कही सिलसिला ए जाम ना हो जाए

सुनने लगा हूँ आज मैं इस दिल की हर एक बात
यारब खड़ा फिर से कोई तूफ़ान ना हो जाए

इस डर से कभी उसने आजमाया ही नहीं
कही सर भी कटाने को वो तैयार ना हो जाए

इतने भी मेरे दोस्त अब धोखे ना दे मुझे
दिले नादाँ ये अब के मेरा होशियार ना हो जाये

ना यूँ बढ़ा ए दिल मेरे सजदों की ये आदत
इंसान है जो कल कहीं खुद्बान ना हो जाए

खंजर उठा कातिल कभी फिर तरसे उम्र भर
कही बाद में मेरा मरने से इनकार ना हो जाए

सूली पे चढ़ाया गया मुझको इसी डर से
मेरी गजलों से आवाम ये बेदार ना हो जाए

इस खौंप से रातों को भी जलता रहा सूरज
जुगनू का अंधेरों में कही नाम ना हो जाए

हमको ना बुला, हम तो सुना करते है दिल की
साकी तेरे दर पर कही इनकार ना हो जाए

निकलने लगे है रोज जाने क्यूँ वो बे हिजाब
कहीं शहर मे अब तेरे कत्ले आम ना हो जाए

रोये थे सितम गर भी कभी जिसको देखकर
तेरे इश्क मे मेरा कहीं वो हाल ना हो जाए

इतना ना सताओं उसे इस बार बहारों
वो बर्गेगुल खिजाँ का तलबगार ना हो जाए

उडाता रहा है रोज मगर आज सोच ले
काँटों से ही कही घर मेरा गुलजार ना हो जाए

डरने लगा हूँ अब तो अपनी सदा दिली से
मेरे कातिल के हक़ मे मेरे ही बयान ना हो जाए

बस इस लिए उसने मुझे रखा सदा पीछे
पत्ता ए नीम कही जाफरान ना हो जाए

ना गिरा जालिम तू गरीबों के मकाँ को
इस जलजले मे तेरा महल मिस्मार ना हो जाए

अच्छी नहीं है दोस्त अब इतनी भी शोहरत
ये नाम तेरा कहीं इश्तहार ना हो जाए

करता है दर्द-ओ-गम ज़मा इतने भी क्यूँ "अयान"
तू खुद ही कहीं ' मीर का दीवान' ना हो जाए.............


खुद्बान=खुदा के जैसा
आवाम=जनता
बेदार=जागरूक
बर्गेगुल=गुलाब
इश्तहार=विज्ञापन
 
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