नहीं मैं इलतिफाते यार होना चाहता हूँ..........

~¤Akash¤~

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खुदाया कुछ नहीं मैं और होना चाहता हूँ
खुद अपने आप में ही बस मैं खोना चाहता हूँ

महक आती हो जिसमे सादगी की, ज़िन्दगी की
ग़ज़ल का मैं ऐसा हुनर मंद होना चाहता हूँ

बहुत फरावानी हैं इस दुनिया में फरेबी खुदाओ की
इंसानियत हो जिसमे ऐसा एक इन्सान होना चाहता हूँ

बहुत ही तन्जिये लहजे हैं लोगो की जुबानों पर
मैं इस दुनिया में खुश गुफ्तार होना चाहता हूँ

कटी हैं ज़िन्दगी अब तक यहाँ गफलत में मेरी
मिला दे ख़ाक में मुझको मैं अब बेदार होना चाहता हूँ

बहुत ज़ालिम अदा है "अयान" मेरे चारागर की
तो अब सारी उमर बीमार रहना चाहता हूँ

रहे हैं अब तलक "अयान" खुलूशे-खुद-फरेबी में
नहीं हैं दोस्त तू, मैं अब खुद को बताना चाहता हूँ

महोब्बत में बहुत हम सह चुके तेरी ज़फाएं
नहीं अब और हाशिया-बरदार होना चाहता हूँ

यूँही खली रहा हैं उमर भर कांसा-ए-दिल मेरा
नहीं मैं इलतिफाते यार होना चाहता हूँ..........
 
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