महोब्बत के शहर में बिना अक्ल के आये होते....

~¤Akash¤~

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जाम हमे भी उसने जी भर के पिलाये होते
जो औरों की तरह हम भी गिडगिडाए होते

हुनर ज़ब्त का था और साथ अना भी थी
फिर चाके जिगर कैसे हर एक को दिखाए होते

खैर तुम तो अब याद भी नहीं करते "अयान"
पर इस नादान को कभी याद तो आये होते

दिल ए बीमार को बस झूठी तसल्ली के लिए
पूछने हाल मेरा कभी तुम भी तो आये होते

काश हम भी समझ लेते रिश्तों की तिजारत को"अयान"
इल्जाम बेवफाई के मेरे सर भी ना आये होते

हमसे काफ़िर पे भला क्या होता दवाओं का असर
हाथ दुआओं के लिए जो माँ ने ना उठाये होते

फिर ना करता जलजलों की शिकायत ज़ालिम
घर गरीबों के कभी जो उसने ना गिराए होते

तेरी आँखों में ये बरसात की रुत ना होती
जो माँ बाप कभी अपने ना रुलाये होते

मौत की शिकायत तो तब करते "अयान"
जो सितम ज़िन्दगी ने हम पे ना ढाये होते

दोस्ती में ही उतरे हैं "अयान" हमेशा सीने में
क्या मजाल दुश्मनों की हम पे खंजर उठाये होते

मेरे खुदा तू भी ना बटतां मंदिर मस्जिद में कभी
तुने ज़मीं पर जो हिन्दू ओ मुशलमाँ ना बनाये होते

मियां कहते हो मुश्किल हैं महोब्बत का सफ़र
कभी जान हथेली पर रखकर भी तो आये होते

अब हो परेशां दिलो की सियासत हैं यहाँ
महोब्बत के शहर में बिना अक्ल के आये होते....
 
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