मैं समझ नहीं पाया आज तक इस उलझन को खून मे हरारत थी या तेरी महोब्बत थी मजनू हों की लैला हों हीर हों के राँझा हों बात सिर्फ इतनी है के आदमी को फुरसत थी.................