कहाँ है तू आज, तू कहाँ है.............

~¤Akash¤~

Prime VIP
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआं आज फिर महकी हुई रात मे जलना होगा
आज फिर सीने मे उलझी हुई बज्मी सांसे हट के बस टूट ही जायंगी बिखर जायंगी,आज फिर जाग के गुजरेगी तेरे ख्वाब मे रात आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआं
कहाँ छुपा दी है रात तूने, कहाँ छुपाये है तूने अपने गुलाबी हाथों के ठंडे फाये,कहाँ है तेरे लबों के चेहरे
कहाँ है तू आज, तू कहाँ है ये मेरे बिस्तर पे कैसा सन्नाटा सो रहा है.......
कहाँ है तू आज, तू कहाँ है.............
 
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