~¤Akash¤~
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नन्ही कलियाँ हैं झुलसी हुई साखे गुल क्या सज़र जल गये
आग ऐसी चमन मे लगी कुछ परिंदों के घर जल गये
तुम तो तकते रहे उँगलियाँ चंद शोलों में लिपटी हुई
तुमने बलवे में देखा नहीं कितने लखते जिगर जल गये
मुल्क तकसीम करके भला खुदपरस्तों को क्या मिल गया
फासिलों की लगी आग में कुछ इधर कुछ उधर जल गये...........
आग ऐसी चमन मे लगी कुछ परिंदों के घर जल गये
तुम तो तकते रहे उँगलियाँ चंद शोलों में लिपटी हुई
तुमने बलवे में देखा नहीं कितने लखते जिगर जल गये
मुल्क तकसीम करके भला खुदपरस्तों को क्या मिल गया
फासिलों की लगी आग में कुछ इधर कुछ उधर जल गये...........