ये भी मुमकिन है मारे शर्म के मर जाऊँ मैं अपना दामन गैर के आगे अगर फैलाऊं मैं आज का दिन भी गया देकर मुझे नाकामिया आज फिर हैं हाथ खाली किस तरह घर जाऊँ मैं......................