बुझा बुझा के सजाता हैं वो मुंडेरों पर उसे चराग से नहीं रौशनी से नफरत है......... शाइस्ता महफिलों की फजाओं मे ज़हर था जिंदा बचे है ज़हन की आवारगी से हम..........