इमदाद भी फिर भाई को भाई नहीं देते दुःख दर्द भी यार्रों के सुनाई नहीं देते बढ़ जाती हैं जब घर की दीवारों की बुलंदी मस्जिद के भी मीनार दिखाई नहीं देते ..........