कुछ कहीं हो जाए,

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
कुछ कहीं हो जाए,
यह संभावनाओं का शहर है।

रात के आग़ोश में
सो जाए सूरज, बहुत मुमकिन,
एक प्याली चाय में
खो जाए सूरज बहुत मुमकिन

कुछ न पूछो
यह नई परिकल्पनाओं का शहर है।

लाख बचकर आप निकलें
चोट लगकर ही रहेगी,
और इस पर आप को ही
भीड़ अपराधी कहेगी।

हों नहीं हैरान
यह सनकी हवाओं का शहर है।

भूलकर भी दो गुने दो चार
अब होता नहीं है
सत्य को कितना खरा
आधार अब होता नहीं है

झूठ के हैं पाँव,
यह प्रेतात्माओं का शहर है।
 
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