Saini Sa'aB
K00l$@!n!
आए हैं,
पाहुन वसंत के
बगिया महकी है
बौराए हैं आम कुंज में कोयल कुहकी है।
बातों ही बातों में तुमने-
पृष्ठ पलट डाले
खुले चित्र-वातायन कितने
विविध रंग वाले
जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
शहदीली रातें
कचनारों से पंख खोलकर
उड़ने की बातें
यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है।
फूले सुर्ख सेमली दिन थे
महुआ भुनसारे
ऋतुपर्णा के अंग-अंग,
छवि-निखरे अनियारे
सरसों लाती मदनोत्सव के
जब पीले चावल
हो उठती वाचाल चूड़ियाँ
उद्दीपित पायल
कागा आया,
फिर मुंडेर पर चिड़िया चहकी है।
अंग-अंग निचुड़े रंगों से,
रस-धारों के दिन
उलझन-रीझ-खीझ-तकरारें
मनुहारों के दिन
अब कगार के वृक्ष
और ये-
लहरें मदमाती
टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
नदिया उफनाती
दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।
पाहुन वसंत के
बगिया महकी है
बौराए हैं आम कुंज में कोयल कुहकी है।
बातों ही बातों में तुमने-
पृष्ठ पलट डाले
खुले चित्र-वातायन कितने
विविध रंग वाले
जिनमें हमने कभी लिखी थीं-
शहदीली रातें
कचनारों से पंख खोलकर
उड़ने की बातें
यादों के अंगार डाल टेसू भी दहकी है।
फूले सुर्ख सेमली दिन थे
महुआ भुनसारे
ऋतुपर्णा के अंग-अंग,
छवि-निखरे अनियारे
सरसों लाती मदनोत्सव के
जब पीले चावल
हो उठती वाचाल चूड़ियाँ
उद्दीपित पायल
कागा आया,
फिर मुंडेर पर चिड़िया चहकी है।
अंग-अंग निचुड़े रंगों से,
रस-धारों के दिन
उलझन-रीझ-खीझ-तकरारें
मनुहारों के दिन
अब कगार के वृक्ष
और ये-
लहरें मदमाती
टाँग खींचने दौड़ पड़ी है
नदिया उफनाती
दिन, हिरना हो गए निठुर पुरवैया बहकी है।