जमाना सुनता रहा, ’ज़ख्म’ सुनाते रहे ।

~¤Akash¤~

Prime VIP
तेरे वस्ल का कोई मौसम न आया,
रूत बदलती रही, साल जाते रहे ।
वफ़ा या ज़फ़ा, मिला जो भी तुझसे,
हम अपनी मुहब्बत निभाते रहे ।

उनके सितम देख कर मैं समझा,
कुछ हमारे बीच भी नाते रहे ।
इस अपनेपन से लगे वो सताने,
हम दिल पे हँसके चोट खाते रहे ।

गया डूब मैं उनकी हस्ती में ऐसे,
कि हरदम वही याद आते रहे ।
दो पल की थी वो मुलाकात लेकिन,
उम्र सारी उन्हे ही भूलाते रहे ।

लम्हे तेरी यादों के सब सँजोकर,
गीत और तरन्नुम बनाते रहे ।
किसी की तड़प और किसी का तराना,
जमाना सुनता रहा, ’ज़ख्म’ सुनाते रहे ।
 
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