लौटकर घर चलो, खुसरो!

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
लौटकर घर चलो, खुसरो!
लौटकर घर चलो, खुसरो!
है उतरती साँझ
श्यामल केश वाली
माँग सिंदूरी दिवा की
हुई काली
धूप के गाहक न मेले में रह अब
छाँह-से तुम ढलो, खुसरो!

ओस न्हाई कांस
वन पर रात छाई!
बाँसुरी को दर्द की
सौग़ात लाई
ऊँघती हैं नागकेसरिया कथाएँ
तुम शमा-से जलो, खुसरो!

कौन सुनता
चुप पहेली मुकरियाँ हैं
दादरा से पीठ फेरे
ठुमरियाँ हैं
महफ़िलों के साथ उखड़े शामियाने
व्यर्थ खुद को छलो, खुसरो!

अब तुम्हारी
वह न पटियाली रही है
दूर कितनी
धार गंगा की बही है
देश काल नहीं रहा अब वह पुराना
हाथ काहे मलो, खुसरो!

अनगिनत दरबार देखे,
शाह देखे
औलिया देखे,
इबादतगाह देखे
कब्र की खामोशियाँ देती सदाएँ
दफ़्न होकर गलो, खुसरो!
 
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