एक मुद्दत के बाद ही सही,

~¤Akash¤~

Prime VIP

एक मुद्दत के बाद ही सही,

पहलु में वो आज बैठे हैं

कहने को हैं वो करीब,

मगर क्या कहें नाराज बैठे हैं



खामोशियों का साज़ लिए लबों पर,

वो यूँ चुपचाप बैठे हैं

सजदे में है जैसे सारा जहाँ,

खुदा बनके वो आप बैठे हैं



निगाहों में लेकर बेरुखी का

कुछ ऐसा वो अंदाज बैठे हैं

हम आहें भरते हैं सैलानियों की तरह,

वो बनकर ताज बैठे हैं



होंसले हमारे मांगते हैं पनाह,

वो खुले-ए-आम-बैठे हैं

चाँदनी को भी जलाने का

करके वो इंतजाम बैठे है



सादगी तो देखिए उनकी,

बिना लगाए कोई इल्जाम बैठे हैं

खामोशी ही जानलेवा है,

लफ़्जों को देकर आराम बैठे हैं



चिराग-ए-मोहब्बत नही वो आँखों में

सजाकर शोलों का बाजार बैठे हैं

शबनम भी गिरे तो खाक हो जाए,

वो गालों पर बिछाकर अंगार बैठे हैं



कत्ल हुए जाते हैं हम,

जाने कैसे कैसे लेकर वो हथियार बैठे हैं

चलो आज मर कर ही देख लें,

वो मगरूर हैं तो हम भी तैयार बैठे हैं
 
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