प्रीत : नौ चरण

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
प्रीत : नौ चरण
प्रीत जन्म है प्रीत मरण है प्रीत धरा है प्रीत गगन है
प्रीत छाँह है प्रीत तपन है प्रीत मधुर वह आलिंगन है
जिसको सबने किया नमन है!
प्रीत मधुरिमा प्रीत अरुणिमा प्रीत अमावस प्रीत पूर्णिमा
प्रीत हृदय में सूर्य-चंद्र-सी उदय-अस्त में यही लालिमा
प्रीत रीत से अलग खड़ी-सी
हर इक मन की ही दुलहन है!
प्रीत रूदन है प्रीत गीत है प्रीत हार है प्रीत जीत है
कहीं मुखर है कहीं मौन है प्राणों का आधार प्रीत है
देह और मन के जुड़ने से
बनी धरा पर यह वंदन है!
प्रीत खुशी है प्रीत वेदना जड़-चेतन में यही चेतना
प्रीत आदि है प्रीत अंत है कहीं ऊपरी कहीं साधना
सघन वृक्ष की तरह जगत में
आवारों का प्रीत भवन है!
प्रीत गंध है प्रीत डगर है प्रीत गाँव है प्रीत नगर है
यह गोरी है यह चूनर है कहीं सिंधु है कहीं लहर है
प्रीत कहीं पर धूल हो गई
कहीं माथ पर यह चंदन है!
कालिदास में यह शकुंतला मीरा में यह कहीं किशन है
ताजमहल की यही नायिका शाहजहाँ का एक सपन है
माने कोई बात अगर तो
प्रीत हृदय का ही दरपन है!
प्रीत कहीं सरनाम हुई है प्रीत कहीं बदनाम हुई है
प्रीत कहीं गुमनाम हुई है प्रीत कहीं नीलाम हुई है
लेकिन इसके बावजूद भी
प्रीत जगत का अंतर्मन है!
जाने कितनी भरी पोथियाँ बात प्रीत की करते-करते
जाने कितने युग बीते हैं बात प्रीत की करते-करते
मेरे तो मौलिक चिंतन में
सरल-कठिन-सा यह दर्शन है!
प्रीत राधिका प्रीत भवानी घनानंद की आम-कहानी
प्रीत शूल है प्रीत सुमन है प्रीत चैन है प्रीत चुभन है
प्रीत तपस्या प्रीत यातना यह जीवन की सरस साधना
पिघल गए पाषाण जिसे सुन
आहत मन का वह क्रंदन है!
 
Top