दो न्याय अगर तो आधा दो,

Saini Sa'aB

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दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रखो अपनी धरती तमाम।
हम वही खुशी से खाएँगे,
परिजन पर असि न उठाएँगे।”
दुर्योंधन वह भी दे न सका,
आशीष समाज की ले न सका।
उलटा हरि को बाँधने चला।
जो था असाध्य साधने चला।
 
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