''अनुकृति हो न जिसकी वो रूप तुमने पाया, उपमेय सब सिमटकर उपमान में समाया ! उस की कला की सचमुच अंतिम निखर हो तुम, गर रूप की है सीमा तो उस सीमा से पार हो तुम !!''