किन राहों में आकर हम भटक गए है,

किन राहों में आकर हम भटक गए है,
उसकी आवाज सुनने को भी तरस गए है,

मेरा आंगन अब तक है सुखा,
लोग कहते है बादल बरस गए है,

जाने कोंन सी पागल थी बो घडी,
मेरे सामने ही जब बो थी खड़ी,

उसको मालूम भी तो हुआ ही नहीं,
दिल कितने दीवाने धड़क गए है,

बही करते है उसका इंतजार,
जहा देखा था उसे पहली बार,

अब तो मालूम हमको रहा ही नहीं,
मोसम कितने आ कर बदल गए है

By Vivek Netan
 
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