एक गली-एक मकान -एक व्यापार

हर बड़े शहर की
आसमान छूती इमारतो
और तेज भागती जिंदगी के बीच,
होती है, एक गली,उस गली, :alarm
मैं एक मकान,उस मकान,
मैं होता है एक व्*यापार!

जहाँ नुमाइश लगती है
जहाँ तोल-मोल होता है
जहाँ जाँच -परख होती है
और सौदा हो जाता है आबरु का,
सौदा होता है मासूमो की जिंदगी का,
कुछ पल के सुख के लिए!

इन पलो मे आदमी
हैवानियत की सारी ह्दे,
पार कर जाता है.
कई मासूमो की चीख
चारदीवारी मैं गुम हो जाती है,
ना जज़्बातो की कीमत,
ना उम्र का लिहाज,
बस खेल होता है -
चमड़ी से दमडी वसूलने का!

रात भर महफ़िल सजती है,
जब सारा शहर सो जाता है
तो इस व्*यापार मैं खूब उछाल आता है,
कई चहेरो से शराफ़त का नकाब उठ जाता है,
और सुबह होते ही खामोशी ,
जैसे रात मैं कुछ हुआ ही ना हो ,
और इंतजार एक नयी रात का
इसीशहर मे,
इसी गली मे,
इसी मकान मे
कुछ नये चहेरे के साथ
फिर वही व्यापार-----!


डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
 
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